यूं तो स्त्रियों के चार भेद किये गए हैं : पद्दमिनी, चित्रानी, शंखिनी और हस्तिनी| परन्तु कामसूत्र में व्यवाहिक कन्या पार्दाषिक तथा वैशिक प्रकरणों में नायिका भेद का विस्तार से वर्णन किया गया है और काव्यशास्त्र नें इन्सी वर्गीकरण को अपनी स्वीकृति भी दी है| और वहीँ अधिकतर चित्र भी इसी भेद पर आधारित हैं| वात्सयायान कामसूत्र के अनुसार नायिका के तीन भेद किये गए हैं :
स्वकीया : स्वकीया नायक की पत्नी होती है अत: इसमें किसी भी तरह का सामाजिक संकोच नहीं होता| श्रृंगार व कायाशास्त्रों में "स्वकीया" नायिका को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और इसे 'ज्येष्ठ' नायिका बी कहा जाता है| स्वकीया नायिका के तीन रूप मिलते हैं : मुग्धा, मध्या और प्रौढ़ा|
स्वकीया : स्वकीया नायक की पत्नी होती है अत: इसमें किसी भी तरह का सामाजिक संकोच नहीं होता| श्रृंगार व कायाशास्त्रों में "स्वकीया" नायिका को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और इसे 'ज्येष्ठ' नायिका बी कहा जाता है| स्वकीया नायिका के तीन रूप मिलते हैं : मुग्धा, मध्या और प्रौढ़ा|
- मुग्धा : मुग्धा या तो नवविवाहिता होती है या फिर वो पतनी अपने पति के स्वाभाव से परिचि होती है| मुग्धा अपने यौवन के शीर्ष पर होती है|
- मध्या: मध्य पति सुख की अभिलाषी होती है जिसे बिहारी नें कुछ इस तरह चरितार्थ किया है : धीर, अधीर और धीराधीरा|
- प्रौढ़ा : प्रौढ़ा एक अनुभवी स्त्री है और वह अपने पति से खुल कर बात कर सकती है| यही नहीं यदि ज़रूरत पड़े तो वह अपने पति को लताड़ भी सकती है| प्रौढ़ा को दो वर्गों में बांटा गया है : ज्येष्ठा और निष्ठा|
परकीया : परकीया नायिका में कामोतेजना सबसे अधिक होती है परन्तु इसे लोक और समाज का भय बी अधिक होता है| परकीय नायिका को कनिष्ठा भी कहा जात है और यह दो प्रकार की होती हैं: कन्या और प्रौढ़ा| परकीया के प्रेम में तीव्रता और आकर्षण अधिक होता है और इसकी निम्न अवस्थाएं हैं :
- गुप्ता : यह नायिका अपने प्रेम भाव को सखियों पर प्रकट नहीं होने देती|
- विदग्धा: इसके प्रेम को केवल नायक ही समझ सकता है|
- लक्षित: यह प्रेम व्यापार को नहीं छुपाती|
- कुलता: कुलता वह नायिका है जो किसी भी नायक से प्रेम करने लगाती है| उसे पंशुचाली भी कहा जाता है|
- अनुशयाना: जो प्रियतम गमन ना हो सकने पर पश्ताचाप कराती है|
- मुदिता: जो सम्भोग सुख की संभावना से प्रसन्नता प्राप्त करती है|
साधारणी : साधारणी लोक लज्जा के बंधनों से मुक्त होती है और इसे वैश्या भी कहते हैं| इसे परित्यक भी कहा गया है अत: काव्य मनीषियों नें स्वकीया व् परकीया प्रेम को ही अपना केंद्र बिंदु बनाया है|
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