सौंदर्य की अभिव्यक्ति नारी के माध्यम से की गयी है| सौंदर्य, दर्शन की कला का उद्देश्य होता है| काव्य नाटक और कामशास्त्र के रचिताओं नें नारी के विविध रूपों, अवस्थाओं, मनोसषाओं तथा स्वभावों का बड़ा ही सहज वर्णन प्रस्तुत किया है| नारी के इसी अध्ययन को "नारी भेद" कहा जाता है| मध्ययुगीय कामशास्त्र, नाटयशास्त्र तथा साहित्यशास्त्र के आचार्यों नें अपने-अपने ग्रंथों में नायिकाओं के वर्णों की कल्पना की है| कामशास्त्र की नायिकाओं के वर्गीकरण का मूलाधार सम्भोग श्रींगार रहा है तो नाट्यशास्त्र का आधार अभिनेताओं से प्रेरित है और साहित्य शास्त्रकारों नें नायिकाओं का वर्गीकरण तथा विश्लेषण उनके द्वारा श्रींगार विकास के उद्देश्य से किया है|
नायिका भेद पर संस्कृत के बाद हिंदी साहित्य में केशव, बिहारी व भातिराम आदि कवियों एवं आचार्यों नें लेखनी चलाई है| इन्ही के काव्यों नें राजस्थानी व पहाड़ी तूलिकाओं में यौवन भरा है| राजस्थानी एवं पहाड़ी चित्रों के विषयों में पूर्ण विविध्ता है लेकिन कृष्ण लीला एवं नायक-नायिका चित्रों नें राजपूत कलम को मृदुता प्रदान की है| नायक-नायिकाओं को चित्रकारों नें राधा-कृष्ण रूप में ही चित्रित किया है क्योंकि आदर्श प्रेमी व प्रेमिका का निर्वाह उन्ही के द्वारा ही संभव था|
अंजना सकलानी
आपके ब्लोग पर अच्छा लगा! स्तरीय सामग्री मिलेगी पूरी आशा है!
ReplyDeleteअपनी तरफ से मैं पूरी कोशिश करूँगा रौशन जी....
ReplyDelete